Thursday 5 September 2013

राजनीतिक शुचिता के लिए...

आपमें से बहुत से लोग मेरी इस बात से सहमत हो सकते हैं कि राजनीति में पवित्रता की कमी गई है। मेरा तात्पर्य आप समझ गए होंगे। राजनीतिक संस्थाओं, दलों या राजनेताओं के व्यहार, कर्म या फिर सोच में जब संकीर्णता जाती है तो राजनीति अपवित्र होने लगती है।आप में से जिन लोगों के पास स्कूल काॅलेज में राजनीति विषय रहा है, वे जानते होंगे कि भारत के महान राजनीतिक वैज्ञानिकों ने राजनीति को धर्म से जोड़ा है।  
वर्तमान में विचारों का संकुचन देखिये कि धर्म को अब लोग हिन्दू या मुस्लिम से जोड़कर ही देखते हैं। जबकि उन महान राजनीतिक वैज्ञानिकों ने धर्म की व्याख्या न्याय के रूप में की है। भारतीय राजनीतिक विचारकों के अनुसार ’’न्यायपूर्ण राजनीति ही धर्म है।
’’लेकिन वर्तमान परिस्थितियों पर नजर डालिए। हमारी फिल्मोंमें खलनायक चरित्रों पर गौर कीजिए। या फिर गली के बच्चों के झगड़े को ही गौर से सुनिये। भारतीय फिल्मों में किसी नेता को खलनायक के तौर पर दिखा दिया जाता है और फिल्में सफल भी रहती हैं। बच्चों के झगड़े में भी कोई कोई यह कह ही देता है कि ’’यह बच्चा बड़ा बदमाश है, नेतागिरी करता है।’’

shri Ghanshyam, Tiwari- MLA Sanganer Jaipur

आप टीवी देखते होंगे, अखबार पढ़ते होंगे। कभी कभार विधानसभाओं में, संसद में या फिर किसी जनमंच पर नेता आपस में उलझ जाते हैं। कपड़े फाड़ दिए जाते हैं,कुर्सियां उठा ली जाती हैं, माईक तोड़ दिए जाते हैं और एक दूसरे पर प्रहारतक कर दिया जाता है, एक दूसरे के खिलाफ शब्दों का ज़हर उगलना तो मानो  प्रथा ही बन गई है।
यह राजनीतिक अपवित्रता है। लेकिन क्या कभी किसी नेता ने इस अपवित्रता को दूर करने कोशिश की? आप इस सवाल पर सोच रहे होंगे कि ’’नहीं, कोई कोशिश नहीं की गई, सारे नेता एक जैसे होते हैं। ऐसी पहल किसी ने नहीं की हैै।
आप यह इसलिए सोचते हैं क्योंकि आपके सामने तस्वीर ही वैसी बना दी गई है। मैं किसी एक पार्टी के लिए इतना तामझाम नहीं लिख रहा हूं। कम ज्यादा, सभी पार्टियों द्वारा कभी कभी, किसी किसी मौके पर राजनीतिक संस्कृति पर चोट कर दी जाती है। मंच पर खड़े होकर एक नेता जब अपना भाषण आरंभ करता है तो विपक्षी दल या विपक्षी नेता की बुराई पहले होती है, बाद में अपनी उपलब्धियां गिनाई जाती हैं।
लगभग लगभग सभी नेताओं के लिए यह बात सही है।लेकिन कुछ नेता हैं, जो इस लगभग-लगभग से बहुतदूर हैं। जिन्हें वास्तव में राजनीतिक संस्कृति के पतन की चिंता है। राजनीति के ह्रास पर दुख है। राजनीतिक अपवित्रता से उनका मन उद्वेलित है और राजनीति शुचिता के लिए वे बहुत ही अच्छी पहल कर चुके हैं, और कर रहे हैं।
इसी अलग कतार के नेता हैं घनश्याम तिवाड़ी राजस्थान में भारतीय जनता पार्टी के एक वरिष्ठ नेता जिन्होंने हाल ही अपना यू-ट्यूब चैनल लांच किया है। अपने सभी वीडियो में वे राजनीतिक शुचिता, राजनीतिक संस्कृति और राजनीतिक व्यवहार पर अपने अनुभवों को आमजन से साझा करते दिखाई दे रहे हैं। राजनीति में चालीस वर्ष से भी ज्यादा सफल समय बिता चुके तिवाड़ी द्वारा की गई यह पहल प्रसंशनीय है।
shri Ghanshyam Tiwari at office

अभी कुछ दिन पहले की ही घटना है। 31 जुलाई को कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और 17 साल तक राजस्थान के मुख्यमंत्री रहे स्व. श्री मोहनलाल सुखाडिया का जन्मदिन था। वे कांग्रेस के एक प्रभावी नेता थे जिन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सा लिया था, भीलवाड़ा की बाढ़ में जान का जोखिम उठाकर आदिवासियों को बचाया था, उनके लिए भोजन, आवास, वस्त्र और दवाईयों की व्यवस्था की थी। सबसे खास बात उन्होंने आजादी के बाद सबसे लम्बे समय तक मुख्यमंत्री पद पर रहकर कई सार्थक कार्य कराए थे। उनका जन्मदिन और विधानसभा में सुबह से शाम तक किसी मंत्री, किसी नेता ने उनके चित्र पर माल्यार्पण तक नहीं किया। 200 विधायकों की विधानसभा में सिर्फ भाजपा के घनश्याम तिवाड़ी ने पुष्प अर्पित कर श्री सुखाडिया को याद किया।

यह सच्ची राजनीति है, सच्ची पवित्रता है, सच्ची राजनीतिक संस्कृति है। इसी  राजनीतिक शुचिता के लिए उन्होंने यू-ट्यूब के अपने एक संस्मरण में भी इसी राजनीतिक सद्भाव को व्यक्त किया है। यह संस्मरण राजस्थान के पूर्व कांग्रेसी मुख्यमंत्री श्री हरदेव जोशी को लेकर है। बीजेपी का पहला अधिवेषन 1984 में सीकर में था। घनश्याम तिवाड़ी अधिवेशन के संयोजक थे। अटल बिहारी वाजपेई जैसे बड़े नेता इस अधिवेशन में पहुंचे थे। तीन हजार लोगों की व्यवस्था की गई थी, लेकिन दस हजार से ज्यादा लोग इस अधिवेशन में पहुंचे। बारिश का मौसम था। व्यवस्थाएं गड़बड़ाने का अंदेशा था। तिवाड़ी ने तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री हरदेव जोशी को फोन लगाया-’’भाईसाहब, अधिवेशन में भीड़ बहुत ज्यादा है, ठहरने की व्यवस्थाएं कमजोर पड़ रही हैं, मदद कीजिए।’’ उधर से जोश जी ने ताना कसा-’’अच्छा तिवाड़ी, विधानसभा में हमारेखिलाफ बोलते हो, विरोध करते हो, और अब मदद मांग रहे हो।’’ तिवाड़ी को लगा कि बात नहीं बनेगी। लेकिन जोशी जी ने तुरंत सीकर के जिला शिक्षा अधिकारी कोकहकर सरकारी स्कूलों की दो दिन छुट्टी करा दी, साथ ही बिजली और पानी एक्सईएन को भी फोन करके श्री तिवाड़ी से मिलने को कहा। दोनोपहुंचे और पूछा-’’बताईये सर, आपकी क्या सेवा कर सकते हैं।’’
वर्तमान दौर में जहां कोई राजनीतिक दल या नेता आलोचना, निंदा या बुराई करने का कोई मौका शेषनहीं छोड़ता ऐसे में क्या कोई उम्मीद की किरण है, जिसके सहारे राजनीतिक शुचिता फिर लाई जा सके? हां, है।

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