Wednesday 13 November 2013

सांगानेर: प्रभुत्व की सीट


राजस्थान की 200 विधानसभा सीटों में से कुछ सीटें ऐसी हैं जहां प्रभुत्व का वर्चस्व रहा है। सांगानेर विधानसभा सीट पर काफी वर्षों तक महिला विधायकों का वर्चस्व रहा। वर्तमान में विगत दस वर्षों से सांगानेर में भाजपा के घनश्याम तिवाड़ी का वर्चस्व है। सांगानेर की कहानी बड़ी दिलचस्प है। एक दौर था जब लगता था कि सांगानेर की सीट महिलाओं  के लिए ही है। कभी वहां भाजपा की विद्या पाठक का राज रहा और कभी कांग्रेस की  इंदिरा मायाराम का। भाजपा और कांग्रेस ने इस  सीट के लिए अपने अपने गणित बिठाए। लेकिन ज्यादातर भाजपा भारी पड़ी। विगत 7 विधानसभा चुनावों में से पांच बार सांगानेर में भाजपा की जीत हुई है। 2 बार कांग्रेस ने यहां जीत दर्ज की है। 

1980 के आम चुनाव में कांग्रस की लहर थी। देश ने जनता पार्टी सरकार को नकार दिया था और कांग्रेस एक बार फिर अपना प्रभुत्व जमाने में कामयाब हो गई थी। लेकिन सांगानेर की स्थिति उलट थी। सांगानेर की सीट पर भाजपा की ब्राह्मण प्रत्याशी  विद्या पाठक और कांग्रेस के पंजाबी प्रत्याशी  प्रमोद बखीन के बीच कड़ी टक्कर थी। हालांकि मत प्रतिशत इस चुनाव में 38 के लगभग रहा लेकिन जीत विद्या पाठक के खाते में गई, प्रमोद बखीन से वे 2177 मतों से विजयी हुई। 1985 के चुनाव पर इंदिरा गांधी की हत्या का असर देखा गया, सहानुभूति की  लहर कांग्रेस के साथ थी, लेकिन सांगानेर में कांग्रेस को किसी भी तरह की सहानुभूति नहीं मिली। हालांकि इस चुनाव में भाजपा विधायक एव ब्राह्मण उम्मीदवार विद्या पाठक के सामने कांग्रेस ने ब्राह्मण प्रत्याशी  उतार कर नया प्रयोग किया, लेकिन कांग्रेस का यह दाव नहीं चला। कांग्रेस के ब्राह्मण उम्मीदवार रमेश चंद्र को भाजपा की ब्राह्मण उम्मीदवार विद्या पाठक से 7248 मतों से हार का मुंह देखना पड़ा। 




1990 के चुनावों में सांगानेर में भाजपा की जड़ें और मजबूत होती दिखाई दी। भाजपा प्रत्याशी विद्या पाठक ने लगातार तीसरी जीत दर्ज की। लगातार बैकफुट पर जा रही कांग्रेस ने इस बार विद्या पाठक के सामने एक महिला जाट प्रत्याशी को खड़ा किया था। कांग्रेस का यह प्रयोग भी फेल हुआ और इंदिरा को 11862 मतों से हारना पड़ा। हालांकि इस बार मत प्रतिशत पिछले चुनाव की तुलना में कम रहा। विद्या ने इंदिरा को बड़े अंतर से हराकर यह साबित किया कि सांगानेर भाजपा और ब्राह्मण प्रत्याशी का गढ़ है। 

1993 के विधानसभा चुनाव ने भाजपा को अप्रत्याशित झटका दिया। पहली बात तो यह कि इस बार चुनाव का मत प्रतिशत 30 से भी नीचे रहा। दूसरी यह कि लगातार तीन बार सांगानेर का प्रतिनिधित्व कर चुकी भाजपा प्रत्याशी विद्या पाठक को सांगानेर की जनता ने चैथी बार नकार दिया। साथ ही पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की हारी हुए प्रत्याशी  इंदिरा मायाराम पर भरोसा जताया। हालांकि इंदिरा मायाराम बहुत कम अंतर से जीत पाई। दोनांे महिला प्रत्याशियों में जीत का अंतर सिर्फ 678 मत रहा। जीत कुछ ही मतों की रही लेकिन कांग्रेस की जाट प्रत्याशी  ने सांगानेर पर मरचम लहरा ही दिया। यह जीत इसलिए भी मायने रखती थी क्योंकि इस चुनाव में पिछले 13 वर्षों से सांगानेर पर एकछत्र राज करने वाली भाजपा प्रत्याशी का गढ़ ढह गया था। 



1998 का चुनाव भी भाजपा के लिए बुरा साबित हुआ। विगत पांच साल में कांग्रेस विधायक इंदिरा मायाराम ने क्षेत्र में अपनी अच्छी पैठ बना ली थी और कांग्रेस की एक सशक्त नेता बनकर उभरी थी। विद्या पाठक से एक बार हारकर उन्होंने अगले चुनाव में इसका बदला ले लिया था। लगातार तीन बार जीती प्रत्याशी को हराना वाकई बड़ी बात थी। इसलिए भाजपा ने 1998 के चुनाव में पाठक पर दाव नहीं लगाया, भाजपा की ओर से ब्राह्मण प्रत्याशी घनश्याम बगरेट को मैदान में उतारा गया। हालांकि बगरेट ने क्षेत्र से लगभग 47 हजार वोट बटोरकर अपना प्रभाव छोड़ा लेकिन वे इंदिरा मायाराम से लगभग 12 हजार वोट पीछे रह गए। सांगानेर पर एक महिला जाट नेता का प्रभुत्व बढ़ रहा था। यह सांगानेर में अब तक की सबसे बड़ी जीत थी। अब भाजपा की राह बहुत कठिन हो गई थी। भाजपा में मायूसी छा गई थी, लगा कि अब कभी सांगानेर की सीट पर वह वापस नहीं आ पाएगी। लगातार दो बार जीत चुकी कद्दावर जाट नेता इंदिरा के सामने भाजपा ने 2003 के चुनाव में घनश्याम  तिवाड़ी को खड़ा किया। घनश्याम तिवाड़ी इससे पहले चूरू और सीकर से विधायक रहे थे।

यह चुनाव कई मायनों में भाजपा के लिए पुनर्जीवन साबित हुआ। प्रदेष में भाजपा ने सरकार बनाई। तिवाड़ी ने सांगानेर से पहली बार खड़े होकर दो बार सांगानेर की विधायक रही इंदिरा को 33 हजार से अधिक वोटों से हराया। तिवाड़ी ने विकास कार्यों और अपने व्यवहार से सांगानेर में बहुत जल्द बहुत गहरी जड़ें जमा ली। वसुंधरा सरकार में वे शिक्षा मंत्री रहे। मंत्री के तौर पर उन्होंने राज्य की शिक्षा व्यवस्था और विधायक के तौर पर सांगानेर का नक्शा ही बदल दिया। 

2008 के विधानसभा चुनाव में राज्य की जनता ने वसुंधरा राजे के राज को नकार दिया लेकिन सांगानेर ने पुनः तिवाड़ी पर भरोसा किया। कांग्रेस ने हालांकि इस बार ब्राह्मण प्रत्याशी  सुरेश  मिश्रा को तिवाड़ी के खिलाफ खड़ा कर जोर लगाया था लेकिन तिवाड़ी ने मिश्रा को भी लगभग 33 हजार वोटों से हराकर सांगानेर में भाजपा का दबदबा कायम रखा।

Tuesday 15 October 2013

विधानसभा में सबसे आगे

विधानसभा आमजन के एक-एक कीमती वोट का महान आगार स्थल है। जनता जिन प्रतिनिधियों को बहुत उम्मीद से चुनकर एक बड़ी हैसियत देती है, वे सभी विधानसभा में बैठकर जनता के लिए कार्य करते हैं। लोकतंत्रीय पद्धति के अनुसार जनता के लिए, जनता के द्वारा और जनता के लिए किया जाने वाला शासन सच्चा लोकतंत्र है। इस लिहाज से विधानसभा एक ऐसा स्थल है जिस पर राज्य की हर उम्मीद टिकी होती है। निश्चय  ही जिम्मेदारी का बोझ बहुत भारी होता है।

विगत कुछ वर्षों में लोकतंत्र में ’’लोक’’ ’’तंत्र’’ से ज्यादा महत्वपूर्ण हुआ है। इसका कारण बढ़ती राजनीतिक चेतना, शिक्षित युवा, समझदार मतदाता और प्रभावी मीडिया जिम्मेदार हो सकता है। लेकिन यह सच है कि आमजन अब आम नहीं रहा  और अपने प्रतिनिधि पर कड़ी नजर रखना एक परंपरा बनती जा रही है। लोकतंत्र के हित के लिए यह बहुत अहम भी है।

इसी अहम परंपरा के तहत अब विधानसभा ने भी विधायकों का रिपोर्ट कार्ड जारी करना आरंभ कर दिया है। इस रिपोर्ट कार्ड में विधानसभा में होने वाली बैठकों, विधायकों की उपस्थिति, उनके द्वारा उठाए गए मुद्दे अथवा सवाल तथा जनता के बीच जाकर अहम मुद्दों पर किए गए धरने प्रदर्शन  तक शामिल किए जाते हैं। इसके बाद विधायकों का यह ब्यौरा साफ हो जाता है कि कौन विधायक कितने दिन विधानसभा में आया। कितनी कार्यवाहियों में उसने भाग लिया। जनहित के कितने मुद्दे उसने उठाए और कितनी बार जनता के लिए धरने  प्रदर्शन किए। इस आधार पर विधायक का एक रिपोर्ट कार्ड तैयार किया जाता है। हर गतिविधि के लिए अंक निर्धारित होते हैं और फिर सभी का योग कर विधानसभा में विधायक की स्थिति साफ की जाती है। इससे जनता को यह मैसेज जाता है कि उनके द्वारा विधानसभा में चुनकर भेजा गया प्रतिनिधि किस तरह का काम कर रहा है। यह एक सराहनीय प्रयास है। राजनीतिक शिक्षा और चेतना को बढ़ाने में यह कदम कारगर साबित हो रहा है।


इस रिपोर्ट कार्ड से कई विधायकों को जहां लाभ होता है वहीं कई विधायकों के लिए मुसीबत भी खड़ी हो जाता है। वे जनता के सामने बेनकाब हो जाते हैं। कई दफे चेहरा उजला निकलता है और कई बार काम करने की निराशा  साफ हो जाती है।

2013 में विधानसभा के अंतिम सत्र के बाद जब यह रिपोर्ट कार्ड सामने आया तो जयपुर में सबसे ज्यादा अंक बटोरने वाले नेता घनश्याम  तिवाड़ी बने। उन्होंने 203 अंक अर्जित किए और अपने क्षेत्र के चहेते बन गए। अपनी इस उपलब्धि को उन्होंने पोस्टरों और फेसबुक के माध्यम से प्रशंसकों से साझा भी किया। उनके क्षेत्र सांगानेर के वासियों ने उनकी इस उपलब्धि पर बधाईयां भी दी। आगामी चुनाव में इसका असर भी देखने को मिलेगा।

कहीं कहीं इस रिपोर्ट कार्ड ने उल्टा असर भी कर दिया। इसका उल्टा असर बगरू विधायक गंगा  देवी पर हुआ। दरअसल गंगा  देवी रिपोर्ट कार्ड के अनुसार सबसे सुस्त विधायक साबित हुई। क्षेत्र में तो वो जनता से ज्यादा मिली ही विधानसभा में उपस्थिति दर्ज कराई। रिपोर्ट कार्ड में वे बहुत पीछे रह गई। क्षेत्रवासियों में इसको लेकर आक्रोश  भी भरा। लेकिन आक्रोश  जाहिर करने के तरीके भी बदल गए हैं। क्षेत्रवासियों में किसी शरारती तत्व ने जयपुर भर में गंगा  देवी के गुमशुदा  हो जाने के पोस्टर चस्पा कर दिए। विधायक जी इससे पानी-पानी हो गई और तुरंत प्रकट होकर जनता को एहसास कराया कि वे गुमशुदा  नहीं हैं।

किसी
 अच्छे काम के परिणाम अच्छे भी निकलते हैं और किसी किसी के लिए बुरे भी। लेकिन राजनीति में अच्छे कार्यों के परिणाम अच्छे ही निकलते हैं, यह तय है।