Friday 2 August 2013

बात सिर्फ एक पुल की नहीं थी...

पुल जोड़ने का काम करते हैं। एक किनारे से दूसरे किनारे को। नेता का भी यही काम होता है। वह जनता को जोड़ता है, लोकतंत्र से, न्याय से, विधान से, सुविधाओं से, उन्नत जीवन से। राजनीति में आकर जनसेवा करना आसान कार्य नहीं। एक की सुविधा दूसरे की दुविधा हो सकती है। राजनीति में अधिकांश लोगों का लाभ ही असल मुद्दा होता है। लेकिन कुछ नेता होते हैं, जो अधिकांश के बजाय पूर्णांश चाहते हैं। ’सर्वे भवन्तु सुखिनः’ की भावना से भरे होते हैं। वे उन कार्यों को प्राथमिकता से लेते हैं जिससे सभी का भला हो।

बात करते हैं सांगानेर की। जयपुर शहर के दक्षिणी छोर पर बसा एक सदियों पुराना गांव। इस गांव में हस्तनिर्मित कागज उद्योग और कपड़े पर लकड़ी के ब्लाॅक से की जाने वाली छपाई विश्व प्रसिद्ध है। गांव में सांगा जी का पुराना मंदिर और जैन मंदिर अपनी ऐतिहासिकता और शिल्प के कारण जाने जाते हैं। जयपुर बढ़ा तो यह गांव उपनगर बन गया। आबादी भी तेजी से बढ़ी। जयपुर का व्यस्ततम मार्ग टोंक रोड़ सांगानेर के पूर्वी किनारे से सटकर था। यह मार्ग आम सांगानेरवासियों को जयपुर से जोड़ता है। ब्लाॅक प्रिंटिंग हो या फिर हैंडमेड पेपर, या फिर यहां फैले हजारों छोड़े बड़े उद्योग, या बात करें नौकरीपेशा लोगों की जो सांगानेर से जयपुर शहर जाने के लिए टोंक होकर निकलते थे, प्रायः एक मुसीबत से रोजाना उन्हें दो चार होना पड़ता था।

leader of BJP


इस मुसीबत का कारण सांगानेर और टोंक रोड के बीच से निकल रहा अमानीशाह नाला और उस पर बना संकड़ा पुल था। समय के साथ साथ बढ़ी आबादी और यातायात के दबाव के कारण कांग्रेसी मुख्यमंत्री श्री शिवचरण माथुर द्वारा बनवाया गया यह पुल नाकाफी साबित होने लगा। पुल के दोना ओर जाम लग जाता। घंटों वाहन फंसे रहते। दूर तक कतारें लग जाती। मंडियों में पहुंचने वाला माल अटक जाता, स्कूल आने जाने वाले बच्चे, नौकरी पर जाने वाले लोग, व्यापारी, किसान सभी त्रस्त। यह एक ऐसी समस्या थी जिससे हर सांगानेरवासी को दो-चार होना ही था। कभी कभार दुर्घनाएं भी हो जाती। तू-तू, मैं-मैं हो जाती। हर किसी को निकलने की जल्दी। समस्या गंभीर थी। सुबह-सुबह नहा धोकर अगर आप अपने काम से निकल रहे हैं और कुछ मीटर की पुलिया के जाम में फंस जाएं तो आपका सारा दिन खराब। 

सांगानेर विधायक श्री घनश्याम तिवाड़ी ने बरसों की इस समस्या को हल करने की ठान ली। पुलिया का सर्वे कराया। काफी पुरानी होने के कारण पुलिया जर्जर हो गई थी। उस पर नए सिरे से काम करने की जरूरत थी। पुलिया को मजबूत और चैड़ा कराने का फैसला लिया गया। 3 सितम्बर 2006 को सांगा सेतु विस्तार का शिलान्यास हुआ। लगभग डेढ़ साल में जनता के लिए 130 मीटर लम्बी और 10 मीटर चैड़ी सड़क जनता के लिए खोल दी गई। वाहनों के लिए पुलिया के विस्तार के साथ पैदल चलने वालों का भी ध्यान रखा गया। पुलिया पर ढाई मीटर का फुटपाथ बनाया गया और साढे सात मीटर चैड़ी सड़क।

Ghanshyam Tiwari  talking about Growth in Rajasthan


सांगानेर की जनता को जाम से मुक्ति मिली। कभी कभार पुरानी बातों को याद कर एक मुस्कान होठों पर बरबस आ जाती है। कभी यह मुस्कान बिना रूके किसी व्यपारी का माल ठीक समय पर गोदाम में पहुंच जाने पर आती है और कभी उन विरोधियों पर जिन्हें इतनी बड़ी उपलब्धि दिखाई नहीं देती और सड़क का एक गड्ढा नजर आ जाता है।

गड्ढे वाली घटना का जिक्र करना भी यहां लाजिमी होगा। हुआ यह कि 25 अप्रैल 2008 को सांगा सेतु का भव्य शुभारंभ हुआ। एक भाजपा नेता ने जनता की इतनी बड़ी और पुरानी समस्या सुलझाई थी, विरोधियों को यह कैसे सहन होता। वे भीतर ही भीतर कसमसाते रहे। आखिर दूसरे ही दिन उन्हें मौका मिल गया। दरअसल पुलिया के पचास फीट दूर पीएचईडी की दो लाईनें जा रही थी। इनमें से छोटी लाईन के ज्वाइंट में पानी लीकेज हो गया और नवनिर्मित सड़क पर गड्ढा हो गया। बस, फिर क्या था। स्थानीय विपक्षी नेता इकट्ठे हो गए और करने लगे नारेबाजी। रोड जाम कर दिया। अरे भाई, जाम से मुक्ति दिलाने के लिए तो पुल बनाया गया, और आप फिर जाम लगा रहे हैं। लेकिन विरोधियों को सिर्फ विरोध करने से मतलब होता है। कुछ लोग नहीं चाहते कि अच्छे लोग जनता से गहराई से जुड़ें, दिलों पर राज करें, इसलिए उन्होंने विरोध का छोटा सा मौका भी नहीं जाने दिया, क्योंकि बात सिर्फ एक पुल की नहीं थी, बात थी एक नेता के बढ़ते प्रभाव की।


चलिए, बातों का सिलसिला चलता रहेगा। खुश रहिए, खुशहाल रहिए। प्रणाम। 

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