भारतीय राजनीति में काले कोट वालों का दबदबा रहा है। पंडित जवाहर लाल नेहरू, वल्लभ भाई पटेल, डाॅ भीमराव अम्बेडकर...। लम्बी फेहरिस्त है। देश की संविधान सभा में काले कोट वाले राजनीतिज्ञों की कमी नहीं थी। उनका अपना राष्ट्रवाद था। इन काले कोट वाले राजनीतिज्ञों पर संविधान को समझने, संशोधित करते और नए विधान बनाने की जिम्मेदारी थी। इसलिए वकील राजनीतिज्ञों का दबदबा था हमारी संसद में। उस समय जैसे वकालत पेशा नहीं बल्कि राजनीति में सक्रिय होने की शर्त थी। लेकिन राष्ट्रवाद काले कोट का मोहताज नहीं था । यह साबित किया 1975 के आपातकाल के दौरान युवा नेता श्री घनश्याम तिवाड़ी ने। राजस्थान में भाजपा के वरिष्ठ नेता और शिक्षा मंत्री रहे श्री तिवाड़ी के जीवन में उस दौर में एक परिवर्तन आ गया।
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Ghanshyam Tiwari Addressing in Public Get Together |
आपातकाल में तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की नीतियों का विरोध करने वालों में सीकर के युवा नेता घनश्याम तिवाड़ी भी शामिल थे। 25 की उम्र में विवाह हो चुका था। पत्नी पुष्पा देवी के गर्भ में छह माह का शिशु था। ऐसे में एक पिता पर परिवार और पत्नी की पूरी जिम्मेदारी थी। उस समय वकालत की वकत थी। देश को परिवर्तन की जरूरत थी। घनश्याम तिवाड़ी जैसे युवा अपना सब कुछ झौंक कर आपातकाल के विरोध में उतर आए थे। राष्ट्रीय नेताओं ने जहां काला कोट पहन कर राजनीति में अपनी जड़ें जमा ली थी, वहीं घनश्याम तिवाड़ी ने वकालत का काला कोट उतार फेंका और निजी पारिवारिक जीवन की परवाह किए बिना दृढ़ता से विरोध में खड़े हो गए।इस विरोध की कीमत भी चुकानी पड़ी ।उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। जेल में डाल दिया गया। इतनी यातनाएं दी गईं कि लोकनायक जयप्रकाश नारायण और मीसा की जेल में बंद कैदी देश भर में दो दिन अनशन पर बैठ गए।
संघर्ष और आंदोलन उन्हें विरासत में मिला था। 1948 में जब संघ पर पहला प्रतिबंध लगा तो उनके ताऊजी श्री पृथ्वीराज तिवाड़ी सहित तिवाड़ी परिवार के पांच लोग जेल गए। इमरजेंसी के दौरान फिर संघ पर प्रतिबंध लगा दिया गया। इस बार तिवाड़ी परिवार की ओर से जेल में जाने वाले 7 लोगों में घनश्याम तिवाड़ी भी शामिल थे।
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True Political Leader Always Interest in Farmers |
आज, राजनीति सांस्कृतिक शून्यता के दौर से गुजर रही है और सत्ता पाने के लिए लोग किसी भी हद तक जाने के लिए तैयार हैं, ऐसे में प्रदेश के कद्दावर नेता श्री घनश्याम तिवाड़ी ने अपने बच्चों को सत्तालोलुप नहीं बनाया। आज भी वे राजनीतिक शुचिता के लिए संघर्षरत हैं। उनके दोनो पुत्र अखिलेश और आशीष समाज और संस्कृति का परिशोधन कर युवा समाज को नई दिशा देने में संलग्न हैं। ज्येष्ठ पुत्र अखिलेश तिवाड़ी ’’पुष्पा देवी संस्थापन-नवजागृति हेतु’’ के माध्यम से समाज को वैदिक संस्कारों से जुड़ने की प्रेरणा दे रहे हैं तो छोटे पुत्र आशीष तिवाड़ी कृषि और पशुपालन के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य कर युवा किसान को वैज्ञानिक तकनीक व गौ-संरक्षण की राह दिखा रहे हैं।